मुख्य बातें संक्षेप में:
– केंद्र सरकार ने आगामी जनगणना 2027 में 35 सवालों की सूची तैयार की है।
– इसमें पहली बार जाति, उपजाति और सामाजिक स्थिति से जुड़ी जानकारियाँ विस्तृत रूप से पूछी जाएंगी।
– राज्यों से जाति व उपजातियों की सूची मांगी गई है ताकि प्रश्नों को अंतिम रूप दिया जा सके।
– बिहार सहित कई राज्य जातीय जनगणना की मांग पहले से कर चुके हैं।
डिजिटल और दो-चरणीय प्रक्रिया
यह भारत की पहली पूर्णतः डिजिटल जनगणना होगी—जिसमें मोबाइल ऐप, GPS टैगिंग, और क्लाउड सिस्टम का उपयोग होगा ।
प्रक्रिया दो चरणों में होगी:
1. House-listing & Housing Census (अप्रैल–सितंबर 2026)
2. Population Enumeration (1 मार्च 2027), जबकि हिमालयी व बर्फ़ीले क्षेत्रों में अक्टूबर 2026 से शुरू होगी ।
जाति-उपजाति की गहराई – 35 सवाल
– पहली बार 1931 के बाद, जाति और उपजाति सहित विस्तृत प्रश्नों की शुरुआत की जाएगी ।
– अनुमानतः 35 प्रश्न पूछे जाएंगे, जिनमें आधारभूत जानकारी (नाम, लिंग, उम्र, शिक्षा, रोजगार) के साथ-साथ जाति/उपजाति, सामाजिक सुरक्षा, योजनाओं का लाभ, धन-संपत्ति, मोबाइल, बैंक खाता, आवास सुविधाएं आदि शामिल हैं ।
लाभ और नीतिगत प्रभाव
– इससे नीति निर्माण, वित्तीय व सामाजिक योजनाओं का लक्ष्य निर्धारण, और लोकसभा/विधानसभा क्षेत्रों का निर्धारण सटीक होगा ।
– जाति-आधारित आरक्षण और न्यायपूर्ण संसाधन वितरण को सुनिश्चित करने में यह डेटा सहायक होगा ।
चुनौतियाँ और पारदर्शिता
– सूचीबद्ध जातियों के मानकीकरण, उपजाति की पहचान, और समावेशी डेटा संग्रह एक बड़ी चुनौती हैं ।
– ऐप आधारित स्व-गणना डेटा की गुणवत्ता और सच्चाई सुनिश्चित करने हेतु डिजिटल चिन्ह एवं मंज़ूरी प्रणाली विकसित की जाएगी ।
कार्यबल और समय-सीमा
– लगभग 34 लाख एने्यूरेटर, 1.3 लाख पर्यवेक्षक, और व्यापक डिजिटल टीम कार्य करेंगे ।
– हाउस लिस्टिंग अप्रैल–सितंबर 2026 तक, जनगणना 1 मार्च 2027 को सभी राज्यों में और अक्टूबर 2026 में बर्फ़ीले क्षेत्रों में होगी ।
– परिणाम अपेक्षित रूप से डेटा संग्रह के 9–12 महीने बाद जारी होंगे ।
क्यों महत्वपूर्ण है यह जनगणना?
– यह पहली जनगणना होगी जिसमें डिजिटल डेटा संग्रहण की योजना है।
– इससे नीति निर्माण, कल्याणकारी योजनाओं और आरक्षण नीति पर प्रभाव पड़ेगा।
– जातीय आधार पर समावेशी विकास की रणनीति तैयार की जा सकेगी।
संक्षेप में: जनगणना 2027 भारत की पहली डिजिटल जनगणना है, जिसमें जाति‑उपजाति सहित 35 सवाल पूछे जाएंगे। यह आंकड़े आने वाली नीतियों, संसाधन वितरण, आरक्षण व्यवस्था, और निर्वाचन क्षेत्रों के निर्धारण में अहम रोल निभाएंगे। हालांकि तकनीकी और पारदर्शिता से जुड़े चुनौतियाँ होंगी, फिर भी यह एक ऐतिहासिक और परिवर्तनात्मक कदम होगा।
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